वसीयत का पंजीकरण/ रजिस्ट्रेशन कराना ऐच्छिक है। किसी भी वसीयत की वैधता या अवैधता इस बात पर निर्भर नहीं करती है कि वसीयत को पंजीकृत किया गया था या नहीं। वसीयत तैयार होने के बाद आप किसी भी समय वसीयत का पंजीकरण करा सकते हैं। इसके लिए कोई निर्धारित समय सीमा नहीं है जिसके भीतर आप को वसीयत पंजीकृत कराना होता है।
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Registration क्यों ?
वसीयत को साबित करना आसान होता हैं
सुप्रीम कोर्ट ने कहा रजिस्ट्रेशन एक्ट के तहत यह आवश्यक नहीं है कि वसीयत को रजिस्टर्ड कराया जाए, लेकिन अब तक के रिकॉर्ड और मुकदमों को देखते हुए कहा जा सकता है कि जिन वसीयत को रजिस्टर्ड कराया गया है उसको साबित करने की संभावना बढ़़ जाती है। इसलिए हमेशा सलाह दी जाती है कि यद्यपि यह जरूरी नहीं है कि वसीयत को रजिस्टर्ड कराया जाए, वसीयत को रजिस्टर्ड कराना चाहिए।
वसीयत खोने में इसे आसानी से पाया जा सकता हैं
यदि वसीयत खो जाए या खराब हो जाए या किसी तरह से नष्ट हो जाए तो सब- रजिस्ट्रार की ऑफिस से वसीयत की प्रमाणित प्रतिलिपि या कॉपी प्राप्त की जा सकती है।
कहां करायें Registration
वसीयत का रजिस्ट्रेशन या तो यह सब-रजिस्ट्रार के कार्यालय में किया जा सकता है या फिर किसी नोटरी के सामने किया जा सकता है। पर जहां तक संभव हो वसीयत का रजिस्ट्रेशन सब-रजिस्ट्रार के यहां कराना बेहतर होगा क्योंकि मूल वसीयत के गुम/नष्ट हो जाने की स्थिति में इसकी प्रमाणित प्रतिलिपि सब-रजिस्ट्रार के कार्यालय से निकाली जा सकती है।
आपको उस जिला सब-रजिस्ट्रार के यहां वसीयत पंजीकरण कराना होता है जिसके अधिकार क्षेत्र में संपत्ति का बड़ा हिस्सा है। किसी भी वसीयत का रजिस्ट्रेशन सब रजिस्ट्रार के कार्यालय में कराना चाहिए। सब रजिस्ट्रार के कार्यालय में ही हम दूसरे संपत्ति संबंधी दस्तावेज जैसे सेल डीड, गिफ़्ट डीड को रजिस्टर्ड कराने जाते हैं।
रजिस्टर्ड वसीयत के अपने फायदे हैं-
वसीयत असली है,साबित करना आसान जब वसीयतकर्त्ता सब-रजिस्ट्रार के कार्यालय में जाकर वसीयत को रजिस्टर्ड करता है, तो आजकल सब की लाइव फोटो क्लिक होती है जो वसीयत के पीछे प्रिंट की जाती है। इससे यह पता चलता है कि वसीयतकर्त्ता अपनी मर्जी से वसीयत बनाई थी, मर्ज़ी से वहां गया था और वह अच्छे मानसिक और शारीरिक स्थिति में था। सब-रजिस्ट्रार के कार्यालय में जाने के लिए उसके साथ कोई जोर जबरदस्ती नहीं की गई थी। गवाहों का भी फोटो होता है जिससे गवाह की ID (पहचान) से छेड़छाड़ नहीं हो सकता है। यदि वसीयत को चुनौती दी जाती है और इसे साबित करने का समय आएगा तो कोर्ट में यही गवाह कहेंगे कि “ हाँ ! हमारे सामने ही इस वसीयत को लिखा गया था और रजिस्टर्ड किया गया था और वसीयतकर्त्ता ने अपनी मर्जी से इसे लिखा था । ”
Note : यदि एक वसीयत पहले सब रजिस्ट्रार के कार्यालय में रजिस्टर्ड करा दी गई है और फिर वसीयतकर्त्ता एक नया वसीयत बनाता है तो नए वसीयत में पुरानी वसीयत के रजिस्ट्रेशन और उसे रद्द किये जाने से संबंधित जानकारी जरूर देनी चाहिए।
कितना खर्च होता हैं और क्या- क्या documents लगता है
वसीयत के रजिस्ट्रेशन में ज्यादा स्टेशन खर्च नहीं आता है। पंजीकरण शुल्क संपत्ति के मूल्य पर निर्भर नहीं होती है और सभी के लिए एक समान होती है समझे कि कुछ 500 -1000 खर्च होता है।
हालांकि अलग-अलग राज्यों में इसमें भिन्नता है इसलिए जरुरी है रजिस्ट्रेशन करवाने से सब रजिस्ट्रार के कार्यालय में जाकर क्या-क्या दस्तावेज होगी, क्या शुल्क लगेगा इत्यादि की पूछताछ कर लेनी चाहिए।
सामान्य तौर पर रजिस्ट्रेशन में वसीयतकर्त्ता का पहचान पत्र जैसे पासपोर्ट, चुनाव पहचान पत्र, ड्राइविंग लाइसेंस, दो पासपोर्ट साइज का फोटो और गवाहों का भी पहचान पत्र और पासपोर्ट साइज फोटो की आवश्यकता होती है।
वसीयत की रजिस्ट्री का एक जोखिम होता है कि इससे चीजें सार्वजनिक हो सकती हैं, इसलिए रजिस्ट्रेशन एक्ट के धारा 42 में एक तरीका दिया गया है इसके अंतर्गत वसीयतकर्त्ता वसीयत को सीलबंद लिफाफे में रजिस्ट्रार के पास जमा कर सकते हैं। जब वसीयतकर्त्ता की मृत्यु होती है तब लाभार्थी या अन्य व्यक्ति आवेदन देकर वसीयत खुलवा सकते है।
रजिस्ट्रार को घर पर बुलाकर या अस्पताल में बुलाकर वसीयत की रजिस्ट्री कराई जा सकती हैं
जब वसीयतकर्त्ता बहुत बीमार हो या फिर अस्पताल में भर्ती हो और इस कारण वह सब रजिस्ट्रार के कार्यालय में जाने से असमर्थ हो तो सब -रजिस्ट्रार को कमीशन पर भी बुलाया जा सकता है यानि सब रजिस्ट्रार को घर पर बुलाकर या अस्पताल में बुलाकर वसीयत की रजिस्ट्री कराई जा सकती है और इसके लिए एक शुल्क सब-रजिस्ट्रार के कार्यालय में जमा करनी होती है।
क्या रजिस्टर्ड विल को चैलेंज किया जा सकता है ?
हाँ, कोई भी वसीयत चाहे वह रजिस्टर्ड है या नहीं, उसे चुनौती दी जा सकती है।
हमने देखा कि किसी वसीयत को रजिस्टर्ड कराना जरूरी नहीं है यह ऐच्छिक और वैकल्पिक है। इसका मतलब यह नहीं है कि एक वसीयत जिसे रजिस्टर्ड नहीं कराया गया है वह झूठी है और इसका मतलब यह भी नहीं है कि एक वसीयत जिसे रजिस्टर्ड करा दिया गया है तो उसमें छल नही हुआ है,और दस्तावेज बिल्कुल सच्चा है और उसे चैलेंज नहीं किया जा सकता है।
यदि कोई दस्तावेज रजिस्टर्ड है तो उसका मतलब सिर्फ इतना है की जिन्होंने उस वसीयत को बनाया था वह और उनके गवाह सभी सब-रजिस्ट्रार के कार्यालय में जाकर दस्तावेज के अस्तित्व को साबित करने की कोशिश की थी लेकिन क्या विषय वस्तु थे हस्ताक्षर जाली थे या कोई छल/धोखा हुआ हस्ताक्षर अपनी मर्जी से किए या नहीं इन सभी आधार पर एक रजिस्टर्ड वसीयत को भी चैलेंज किया जा सकता है। मान लेते हैं एक वसीयत रजिस्ट्रेशन कराया गया बाद में एक दूसरा वसीयत लिखा गया जिसे रजिस्ट्रेशन कराया नही जा सका, तो कानूनन बाद वाला वसीयत प्रभावी होगा यद्यपि वह रजिस्टर्ड नही है।