वसीयत एक चुनौतीपूर्ण दस्तावेज

वसीयत को चुनौती दी जा सकती है और इसके कई आधार हो सकते है :-

वसीयत को कम से कम 2 गवाहों की उपस्थिति में सत्यापित कराना चाहिए यदि ऐसा नहीं है तो वसीयत को चुनौती दी जा सकती है।

वसीयत को इस आधार पर भी चुनौती दी जा सकती है कि वसीयतकर्त्ता का उद्देश्य वसीयत लिखना नहीं था हालांकि यह आधार कम प्रयोग में आता है क्योंकि इसे सिद्ध करना काफी कठिन होता है।

वसीयत को बुढापा, पागलपन, दूसरे के प्रभाव में, नशा, कपट, छल या किसी अन्य कारण से मानसिक क्षमता के अभाव के आधार पर चुनौती दी जा सकती है। जब वसीयत को इस आधार पर चुनौती दी जाती है कि वसीयतकर्त्ता मानसिक रूप से सक्षम नहीं था वसीयत बनाने के लिए, तो चुनौती देने वाले को यह दिखाना पड़ता है कि वसीयतकर्त्ता को वसीयत के क्या परिणाम होंगे वसीयत बनाते समय वह नहीं समझ सकता था।

वसीयत को इस आधार पर भी चुनौती दी जाती है कि वसीयतकर्त्ता किस चीज में दस्तख़त कर रहा है वह नहीं जानता था या वसीयत में क्या लिखा है वह नहीं जानता था। लेकिन इसे सिद्ध करने का भार(burdan of proof) चुनौती देने वाले की होती है।

परिवार के सदस्य भी वसीयत को चैलेंज करते हैं कि वसीयत  में उनको पर्याप्त जगह नहीं मिली।

अनुचित प्रभाव अनुचित प्रभाव ऐसी स्थिति को बताता है जहां आपके द्वारा किसी निश्चित तरीके से कार्य करने के लिए प्रेरित किया जाता है जो आप की स्वतंत्र इच्छा के विरुद्ध या परिणाम के पर्याप्त अध्ययन के बिना होता है। यदि ऐसी स्थिति में वसीयत बनाया जाता है तो कानून में इसे चुनौती दी जा सकती है

धोखाधड़ी यदि एक व्यक्ति को वसीयत बनाने के लिए धोखा दिया जाता है तो अदालत में इसे चुनौती दी जा सकती है। इस तरह के वसीयत को वसीयतकर्त्ता की स्वतंत्र सहमति से नहीं माना जाता है और इसे अदालत रद्द कर सकती है।

जबरदस्ती अगर कोई वसीयत बल या धमकी का इस्तेमाल करके बनवाया गया है ऐसा वसीयत अवैध है और अदालत उसे रद्द कर सकती है।

समुचित निष्पादन का अभाव वसीयत को वसीयतकर्त्ता द्वारा विधिवत हस्ताक्षरित होना चाहिए | वसीयत कर देने वाले के हस्ताक्षर के साथ वसीयत में कम से कम दो गवाहों का हस्ताक्षर होना चाहिए जिन्होंने देखा है की वसीयत वसीयतकर्त्ता द्वारा किया गया है अगर इसमें से कोई आवश्यकता पूर्ण नहीं हुई है तो वसीयत को वैध नहीं माना जाता है और इसे चुनौती दी जा सकती है।

वसीयत क्षमता का अभाव वसीयत करने वाला व्यक्ति को वसीयत की प्रकृति और परिणामों को समझना चाहिए वसीयतकर्त्ता को पूरी तरह समझना चाहिए कि वह संपत्ति का किस तरह का निपटान या विभाजन कर रहा है और वह मानसिक रूप से फिट होना चाहिए।

यदि वसीयत ऐसी भाषा में बनाई जा रही है जो वसीयतकर्त्ता जानता ही नहीं है, जैसे बाल ठाकरे के मामले में हुआ है। उनके वसीयत को इस आधार पर चुनौती दी गई है कि वह इंग्लिश में है(क्योंकि बाल ठाकरे हमेशा मराठी भाषा का प्रयोग करते थे)। यदि वसीयत ऐसी भाषा में बनाई जाती है जो वसीयतकर्त्ता नहीं जानता है तो एक सर्टिफिकेट लगाना चाहिए कि इस वसीयत को मेरे द्वारा हिंदी सिंधी गुजराती या जो भी भाषा वसीयतकर्त्ता की मातृभाषा है में बता दिया गया है और वह इसे पूरी तरह से समझ गया है और इसे भी दो गवाहों के द्वारा सत्यापित करना चाहिए। आजकल वीडियो रिकार्डिंग की सुविधा उपलब्ध है अच्छा होगा कि वसीयतकर्त्ता एक वीडियो क्लिप बना ले जिसमें वह सारी वसीयत बनाने की प्रक्रिया – हस्ताक्षर करना, गवाहों द्वारा सत्यापित करना और फिर उसे कैमरे के सामने पढ़कर सुनाना- को रिकॉर्ड कर ले। इससे यह भी साबित हो जाएगा कि वसीयतकर्त्ता अच्छे शारीरिक और मानसिक स्थिति में है और उसने अपनी मर्जी से वसीयत बनाया है इससे चुनौती की जो संभावना है वह खत्म हो जाएगी।

यदि आप भी वसीयत को चुनौती देने चाह रहे हैं तो कुछ बातों का ख्याल रखना चाहिए किसी वसीयत को चुनौती देना बड़ा कानूनी मामला है। भारत में तो परिवारिक संपत्ति का बंटवारा हमेशा बुरी बात मानी गई है। लेकिन फिर विवाद है तो कोर्ट में जाने की ठोस वजह होनी चाहिए जैसे ऊपर आधार बताए गए हैं उनका विश्लेषण कर लेना चाहिए और यदि मामला बनता है तभी कोर्ट जाना चाहिए। आपको यह समझना है कि आप अपने ही करीबी लोगों के खिलाफ जा रहे हैं इसके लिए आप खुद को अच्छी तरह से तैयार कर ले। वसीयत को चुनौती देने का मतलब है दिल दिमाग पर बोझ बढ़ाना और इसके लिए आप तैयार हैं तभी आगे बढ़े। यदि आपको लगता है कि आपके साथ गलत हुआ है तो आपको जरूर उस पर कानूनी सवाल खड़े करना चाहिए। आपको वसीयत पर सवाल उठाना है तो उसकी ठोस वजह होनी चाहिए जैसे कि मरने वाला दिमागी तौर पर इस स्थिति में नहीं था कि वसीयत लिख सके या उससे किसी दबाव कपट या किसी के प्रभाव में आकर धोखे से वसीयत लिखवाया गया है आदि-आदि और इसे साबित करने की जिम्मेदारी ( burden of proof) आपकी ही होगी। कोर्ट जाने से पहले नफे-नुकसान का हिसाब जरुर लगा लेना चाहिए | कई बार कोर्ट कचहरी के खर्चे इतने होते हैं कि जितना आपको संपत्ति में हक मिलना है उससे ज्यादा तो कोर्ट कचहरी के चक्कर में ही खर्च हो जाता है। इसलिए हिसाब यह लगा लेना चाहिए कि कानूनी लड़ाई से कुछ फायदा होगा या नहीं या सारा पैसा बर्बाद हो जाएगा। मुकदमा लड़ने के लिए सही वकील का चुनाव भी जरूरी है इसके लिए इन मामलों के जानकार वकील को ही चुने किसी ऐरे गैरे को नहीं। और एक बार अंत में मुकदमा करने से पहले अपने परिवार के लोगों से,  रिश्तेदारों से बात कर ले शायद बात करने से बात बन जाये और अदालत जाने की नौबत ना आए। कई बार जो बच्चे सोचते हैं वह मां-बाप नहीं सोचते हैं, भावना की जगह सच्चाई का सामना करना बेहतर होगा। भावुक होकर पैसे के मसले को नहीं सुलझाया जा सकता, बेहतर होगा कि आप अपने मां-बाप की राय का सम्मान करें। आपको वारिस नहीं बनाया है तो जबरदस्ती उसके हकदार नहीं बन सकते हैं। इन बातों का ख्याल रख कर ही मामला कोर्ट में ले जाए।

हां, यदि आप वसीयत को चैलेंज करना चाहते हैं या सोच रहे हैं तो वसीयतकर्त्ता की मृत्यु के तुरंत बाद आप को कोर्ट में वसीयत को चुनौती देनी चाहिए क्योंकि यदि वसीयत के अनुसार संपत्ति का विभाजन हो जाता है तो कोर्ट के लिए इसे वापस कराना काफी कठिन हो जाता है इसलिए जितना जल्द हो सके चुनौती देनी चाहिए।

 

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *