आप वसीयत बनाकर अपनी संपत्ति नगद सोना इत्यादि को अपने लाभार्थियों के बीच बांट देते हैं, लेकिन हो सकता है कि अभी भी कुछ बच गया हो जिसे आप वसीयत में नहीं लिख पाए हो तो ऐसे में आप अवशिष्टीय वसीयतदार (residuary legatee) का प्रावधान कर सकते हैं।
यानी बची हुई संपत्ति किसे दिया जाएगा इसे भी स्पष्ट करने की आवश्यकता होती है। जैसे वसीयत बनाने के बाद आप कुछ धन अर्जित करते या वसीयत में सम्पति बाटने के बाद आपको लगता है कि कुछ छूट गया तो ये छुटे हुए संपत्ति को आप किसे देना चाहते हैं इसे भी वसीयत में साफ कर देना चाहिए।
अवशेष पाने वाले को नामांकित करने में सावधानी बरतनी चाहिए क्योंकि ऐसे कई मामले आए हैं जब एक नौकर को करोड़ों की संपत्ति इसलिए मिल गयी क्योंकि वसीयत में उसे अवशेष पाने वाला वारिस यानी residue legatee के रुप में रखा गया था। जैसे एक बुज़ुर्ग व्यक्ति वसीयत बनाता है उसके बाद वह कोई प्रॉपर्टी खरीद लेता है और इसका कोई जिक्र वसीयत में नहीं करता है। वसीयत में उन्होंने अवशिष्टीय वसीयतदार अपने नौकर को नामंकित किया है। ऐसे में उसकी यह संपत्ति अवशिष्टीय वसीयतदार यानी नौकर को मिलेगी। इस प्रकार वह करोड़ों का फ्लैट नौकर को मिल जाता है।
इसी तरह से किसी लाभार्थी की मृत्यु होने पर उस विरासत का पतन (legacy lapse) होता है और यदि इसका वसीयत में सुधार न किया जाए या कोडपत्र (codicil) न बनाया जाए तो अवशिष्टीय वसीयतदार को वह प्रॉपर्टी मिलती है। जैसे एक अविवाहित व्यक्ति वसीयत बनाता है और एक बंगला अपने भतीजे को दे देता है और बचे हुए कुछ बैंक अकाउंट अपने नौकर को अवशिष्टीय वसीयतदार के रूप में देता है बाद में एक दुर्घटना में वह और उसका भतीजा दोनों मर जाते हैं क्योंकि यह स्पष्ट नहीं है कि किसकीे मृत्यु पहले हुई ? इसीलिए बंगला उस नौकर को अवशिष्टीय वसीयतदार होने के कारण मिल जाता है, क्योंकि जैसे ही भतीजे की मृत्यु हुई यह उपधारणा है कि विरासत वापिस वसीयतकर्त्ता के पास चला गया और वसीयतकर्त्ता की मृत्यु के बाद सभी प्रॉपर्टी नौकर को अवशिष्टीय वसीयतदार होने के कारण मिल जाता है।