शादी विवाह और पारिवारिक बातों से संबंधित विवादों में सुलह और समझौते कराने और विवादों को जल्द निपटने के लिए 1984 में फैमिली कोर्ट एक्ट पारित किया गया था। इस एक्ट के तहत हर नगर में पारिवारिक न्यायालयों की स्थापना की गई है।
Family court act जम्मू और कश्मीर राज्य को छोड़कर पूरे भारत पर लागू है।
इस article में family court से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी दी गई है।
स्थापना
राज्य सरकारें इस कानून के अनुसार उच्च न्यायालय से परामर्श करने के बाद पारिवारिक न्यायालय की स्थापना करती है।
इस कानून के लागू होने के बाद राज्य सरकारें किसी नगर या कस्बे के ऐसे क्षेत्र के लिए जिसकी जनसंख्या दस लाख से अधिक है पारिवारिक न्यायालय यानी फैमिली कोर्ट की स्थापना करती है।
न्यायाधीश
राज्य सरकारें उच्च न्यायालय की सहमति से एक या एक से अधिक व्यक्तियों को पारिवारिक न्यायालय का न्यायाधीश या न्यायाधीशों के रूप में नियुक्त करती हैं।
न्यायाधीश नियुक्त होने के लिए अहर्ता
पारिवारिक न्यायालय का न्यायाधीश होने के लिए न्यायाधीश को काफी अनुभवी होना चाहिए।
इसलिए ऐसे व्यक्ति पारिवारिक न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया जाता है, जो कम से कम 7 वर्षो तक भारत में कोई न्यायिक पद या किसी अधिकरण के सदस्य का पद या केंद्र या राज्य के अधीन कोई ऐसा पद धारण किया हो जिसमें विधि का विशेष ज्ञान जरूरी है।
इसके अलावा ऐसे व्यक्ति को भी कुटुंब न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया जा सकता है जो किसी उच्च न्यायालय का या दो या अधिक उच्च न्यायालयों का लगातार कम से कम 7 वर्षों तक अधिवक्ता रहा हो।
न्यायाधीशों के रूप में नियुक्ति के समय यह ध्यान रखा जाता है कि ऐसे व्यक्ति को पारिवारिक न्यायालय का न्यायाधीश बनाए जो विवाह संस्था की सुरक्षा करने ,बालकों का कल्याण करने और सुलह परामर्श से विवादों का निपटारा करने में अनुभवी हो, विशेषज्ञ हो।
न्यायाधीशों की नियुक्ति में महिलाओं को प्राथमिकता दी जाती है।
समाज कल्याण अधिकरणों आदि का सहयोजन
पारिवारिक न्यायालय इस कानून में दी गई शक्ति का बेहतर इस्तेमाल कर सके, इसके लिए राज्य सरकार उच्च न्यायालय से परामर्श करके समाज /परिवार कल्याण में लगी संस्था, संगठन ,या व्यक्ति को पारिवारिक न्यायालय के साथ सहयोजित कर सकता है।
अधिकारिता
पारिवारिक न्यायालय विवाह के पक्षकारो के बीच सम्पति संबंधी विवाद, विवाह संबंधी विवाद जैसे:
*विवाह को शून्य घोषित करना,
*तलाक ,
*दाम्पत्य अधिकारों की प्रत्यास्थापना,
*न्यायिक पृथक्करण ,
*विवाह की विधिमान्यता आदि ।
*किसी व्यक्ति के धर्मजत्व की घोषणा के बारे में वाद
*भरण पोषण से संबंधित वाद
*किसी व्यक्ति की संरक्षता या अभिरक्षा से संबंधित वाद पर क्षेत्राधिकार रखती है।
अन्यन्य
पारिवारिक न्यायालय अधिकतर मामलों में प्रयास करती है कि मामला आपसी सुलह और समझौते से खत्म हो जाए।
यदि पारिवारिक न्यायालय को ऐसा लगता है कि दोनों पक्षों के बीच समझौता की संभावना है, तो परिवार न्यायालय कार्यवाही को ऐसे समय के लिए स्थगित कर सकता है ताकि समझौता हो सके।
पारिवारिक न्यायालय सिविल कोर्ट समझा जाता है और उसे सिविल कोर्ट की सारी शक्तियां होती है।
पारिवारिक न्यायालय की एक मुख्य विशेषता यह होती है कि इसकी सुनवाई बंद कमरे में की जा सकती है। यदि कोर्ट को ऐसा लगता है,या दोनों पक्षकारों में से कोई ऐसा चाहता है तो कार्रवाई बंद कमरे में की जा सकती हैं।
चिकित्सा और कल्याण विशेषज्ञों की सहायता
न्यायालय अपनी कार्रवाई में आवश्यक समझता है तो किसी चिकित्सा विशेषज्ञ या किसी कल्याण विशेषज्ञ की सहायता ले सकता है ।
विधिक प्रतिनिधित्व का अधिकार
पारिवारिक न्यायालय के समक्ष किसी कार्रवाई में वाद के पक्षकार को इस बात का अधिकार नहीं होगा कि किसी वकील के द्वारा पैरवी हो।
हां, यदि पारिवारिक न्यायालय यह न्याय के हित में समझता है, तो किसी विधि विशेषज्ञ की न्याय-मित्र के रूप में रख सकता है।
भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 का लागू होना
कोई पारिवारिक न्यायालय ऐसे किसी रिपोर्ट दस्तावेज़ जानकारी या बात को जो किसी विवाद में ,प्रभावकारी रीति से कार्यवाही करने में उसकी सहायता कर सकेगा तो वह भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत अन्यथा सुसंगत या ग्राह्य हो या ना हो, साक्ष्य के रूप में प्राप्त कर सकता है।
किसी पारिवारिक न्यायालय के समक्ष कार्रवाई में यह आवश्यक नहीं है कि गवाहों का साक्ष्य विस्तार से लिखा जाए।
लेकिन न्यायाधीश जैसे जैसे प्रत्येक गवाहों की परीक्षा होती जाती है वैसे-वैसे गवाहों ने जो साक्ष्य दिए हैं उसका सारांश का ज्ञापन लिखेगा और ऐसे ज्ञापन पर गवाह और न्यायाधीश हस्ताक्षर करेंगे और यह अभिलेख का भाग होता है।
शपथ पत्र पर औपचारिक साक्ष्य
किसी व्यक्ति का ऐसे साक्ष्य जो औपचारिक साक्ष्य है ,शपथ पत्र पर दिया जा सकेगा और सभी न्यायसंगत अपवादों के अधीन रहते हुए किसी पारिवारिक न्यायालय के समक्ष किसी वाद या कार्यवाही में साक्ष्य में पढ़ा जा सकेगा।
यदि परिवार न्यायालय ठीक समझता है तो वह किसी ऐसे व्यक्ति को समन कर सकता है और उसके शपथ पत्र में अंतर्विष्ट तथ्यों के बारे में उसकी परीक्षा कर सकता है तथा यह वाद या कार्यवाही के पक्षकारों में से किसी के आवेदन पर ऐसा करेगा।
निर्णय
पारिवारिक न्यायालय के द्वारा पारित किसी डिक्री या आदेश का वही प्रभाव होगा, जो किसी सिविल न्यायालय का होता है और उसका निष्पादन सिविल न्यायालय की डिक्री या आदेश के निष्पादन के तौर तरीकों से ही होगा।
अपील
पारिवारिक न्यायालय द्वारा पारित किसी आदेश डिग्री के विरुद्ध उच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है।
यह अपील तथ्य और विधि दोनों के संबंध में की जा सकती है।
लेकिन जहां कुटुंब न्यायालय द्वारा पक्षकारों की सहमति से आदेश पारित किया गया है तो अपील नहीं होगी।
अपील के लिए समय सीमा भी दी गई है। कुटुंब न्यायालय या पारिवारिक न्यायालय के निर्णय आदेश की तारीख से 30 दिन के भीतर अपील की जा सकती है।
अपील की सुनवाई
दो या अधिक न्यायाधीशों से मिलकर बनी हुई किसी न्यायपीठ द्वारा की जाती है।
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