उत्तराधिकार एक प्रक्रिया है, जिससे मृतक की संपत्ति और दायित्व (assets & liability ) जीवित व्यक्तियों को दी जाती है ।
जैसे मान लेते हैं A ने एक flat बुक किया, जिसकी कीमत 2 करोड़ है । एक करोड़ दे दिया ,इस बीच A की मृत्यु हो जाती है। उत्तराधिकार में A के लड़के को flat मिलेगा लेकिन इसके साथ साथ एक करोड़ का दायित्व भी मिलेगा जो कंपनी को चुकाना होगा।
उत्तराधिकार दो तरह के होते है-
1. निर्वसीयती उत्तराधिकार (intestate succession)
2. वसीयती उत्तराधिकार (testate succession)
जब वसीयत नहीं लिखी जाती है तो संपत्ति का बंटवारा उस व्यक्ति के पारिवारिक विधि (पर्सनल लॉ ) में दिए गए तरीकों के अनुसार होती है। जैसे यदि एक हिंदू की मृत्यु होती है और उसने वसीयत नहीं लिखा है तो हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में दिए गए तरीकों के अनुसार संपत्ति का बंटवारा होगा| इसी तरह से मुस्लिम पारसी, ईसाई सभी के अपने-अपने पर्सनल लॉ है। इसे निर्वसीयत उत्तराधिकार कहते है।
और जब वसीयत लिखा जाता है तो इसे वसीयती उत्तराधिकार कहते है और वसीयतकर्ता की इच्छा के अनुसार संपत्ति का बंटवारा उसकी मृत्यु के बाद किया जाता है।

भारत में कोई उत्तराधिकार के लिए एकरूप कानून नहीं है । हिंदू ,सिख , बौद्ध, जैन सभी हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के दायरे में आते हैं। मुस्लिम उत्तराधिकार कानून संहिताबद्ध नहीं है बल्कि यह उनके धार्मिक पुस्तकों पर आधारित है । मुस्लिम शरीयत कानून के दायरे में आते है । मुस्लिम में भी शिया और सुन्नी के लिए अलग अलग कानून है। मुस्लिम मौखिक वसीयत बना सकते हैं और इन्हें सत्यापित करने की आवश्यकता नहीं है । इसाई ,और विदेशी नागरिक पर भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925 लागू होता है। स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत ( अंतरजातीय और अंतरधार्मिक विवाह) जिनका विवाह होता है,उनका उत्तराधिकार भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925 में दिए गये प्रावधान के अनुसार होता है। जैसे सैफ अली खान ने करीना कपूर से शादी की, शाहरुख खान ने गौरी से शादी की, इनके उत्तराधिकार में भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925 लागू होगा।
पारसियों का अपना कानून है।