वसीयत को probate कराना क्यों जरुरी हैं, जाने probate की पूरी प्रक्रिया

प्रोबेट (Probate) की प्रक्रिया में सक्षम न्यायालय अपने मुहर से एक वसीयत को प्रमाणित घोषित करता है। प्रोबेट से एक निजी दस्तावेज कानूनी दस्तावेज बन जाता है। प्रोबेट जब जारी कर दिया जाता है तो यह पुख्ता सबूत होता है की वसीयत वैध है, सही है और वसीयतकर्त्ता को वसीयत बनाने की पूरी योग्यता थी।

यदि कोई झगड़ा नहीं है या वसीयत को कोई चुनौती नहीं है तो प्रोबेट की कोई आवश्यकता नहीं है और संपत्ति आपस में बांटा जा सकता है। वसीयत को प्रोबेट कराना अनिवार्य नहीं है बल्कि इसके लिए हमेशा सलाह दी जाती हैं। जिस तरह वसीयत को पंजीकरण/रजिस्टर्ड कराना कानूनन आवश्यक नहीं है पर सलाह दी जाती है कि उसे रजिस्टर्ड करा दिया जाए इससे उस वसीयत को कुछ प्रमाणिकता मिलती है। लेकिन कानून की दृष्टि में वसीयत स्वयं में कोई सबूत नहीं है क्योंकि इसका रजिस्ट्रेशन कराया गया है। जब किसी को इसे साबित करना होता है तो इसे या तो प्रोबेट के जरिए या गवाहों का परीक्षण के जरिए साबित किया जाता है। भारत में कई राज्यों में यह जरुरी नहीं है कि वसीयत को प्रोबेट कराया जाए।

वसीयत को प्रोबेट करना कब जरुरी है या वह कौन सी परिस्थितियां है कि जब वसीयत को प्रोबेट कराना चाहिए?

भविष्य की संदेह शंकाओं को दूर करने के लिए और वसीयत को पक्का दस्तावेज बनाने के लिए प्रोबेट कराने की हमेशा सलाह दी जाती है। या जब कोई वसीयत को चुनौती दे, तब प्रोबेट कराना जरूरी होता है।

क्या एक पंजीकृत/रजिस्टर्ड वसीयत को प्रोबेट कराना जरूरी है?

सबसे पहले कानूनन वसीयत को रजिस्टर्ड कराना जरूरी नहीं है इसी तरह से वसीयत को प्रोबेट कराना भी जरूरी नहीं है लेकिन आप चाहते हैं कि भविष्य में कोई संदेह (चूंकि वसीयत लिखने वाला अब इस दुनिया में नही है) न हो तो वसीयत को प्रमाणित करने के लिए प्रोबेट कराना चाहिए।प्रोबेट से वसीयतकर्त्ता की वसीयत बनाने की योग्यता  (tastamentory capacity)   साबित भी होती है।

प्रोबेट का मतलब है कि आप किसी वसीयत की प्रामाणिकता सिद्ध करना चाहते है, और इसलिए आप कोर्ट जाते है और कोर्ट के सामने दस्तावेज रखते है। कोर्ट उस दस्तावेज को और उन सारी परिस्थिति को जांच करता है जिसमे वह वसीयत बनाई गई थी और फिर कोर्ट प्रमाणपत्र देता है कि वसीयत सही है। इसका फायदा यह होता है कि कल को कोई वसीयत को चुनौती देता है तो कोर्ट का यह प्रमाणपत्र (प्रोबेट आर्डर ) काम आता है।

प्रोबेट के लिए आवेदन करते समय मृतक की सारी संपत्ति का विवरण देना होता है।

कुछ कंपनियां पंजीकृत वसीयत को और कुछ मामलों में वसीयत को जिनको प्रोबेट मिल गया है, उन्हें मान्यता देतीे है। अचल संपत्ति हस्तांतरण में भी प्रोवेट की आवश्यकता होती है।

कोर्ट में यदि आपका वसीयत शून्य करार दे दिया जाता है तो आप निर्वसीयत हो जाते हैं और आपकी संपत्ति का बंटवारा आपके परिवारिक विधि में दिए गए प्रावधान के अनुसार किया जाता है।

जिन मामलों में वसीयत में निष्पादक (Executor) नामांकित नहीं होते हैं, उन मामलों में कोर्ट लेटर ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन (letter of administration ) जारी करता है।

प्रोबेट के लिए आवेदन जमा करते समय आपको कुछ दस्तावेज साथ में जमा करना होता है जो साबित करें कि –

  1. वसीयत असली है और अंतिम वसीयत है जिसे वसीयतकर्त्ता के द्वारा बनाया गया है,
  2. वसीयतकर्त्ता के मृत्यु के संबंध में प्रमाण जैसे मृत्यु प्रमाण पत्र, और
  3. वसीयत, वसीयतकर्त्ता द्वारा स्वस्थचित मन से पूरे होशो हवास में बनाया गया है।

प्रोबेट पाने की प्रक्रिया

प्रोबेट के लिए वसीयत का निष्पादक या लाभार्थी को सक्षम न्यायालय में सादे स्टाम्प पेपर में देय कोर्ट फीस के साथ अर्जी दाखिल करना होता है। कोर्ट फीस संपत्ति के मूल्य पर निर्भर करता है। फीस उस सम्पति जो वसीयत में लिखी गई है, का सर्किल रेट का कुछ प्रतिशत लगता है। अंदाजन प्रोबेट में आजकल कम से कम 75000 रुपए लगता है इसमें वकील की फीस अलग है। लगभग छह माह में कोर्ट प्रोबेट की प्रक्रिया पूरी कर लेती है और प्रोबेट जारी कर देती है।

इसके लिए कोर्ट यह प्रमाणित करने को कहता है कि वसीयतकर्त्ता की मृत्यु हो चुकी है, साथ ही वसीयत वसीयतकर्त्ता द्वारा विधिक रुप से बनाई गई है और यह वसीयतकर्त्ता का अंतिम वसीयत और इच्छापत्र है। जब प्रोबेट के लिए आवेदन जमा किया जाता है तो इसकी जांच अधिकारियों द्वारा की जाती है और मृतक के नजदीकी सभी संबंधियों को नोटिस भेजी जाती है। साथ ही एक नोटिस आम लोकस्थान पर दृश्ययोग्य जगह पर लगा दिया जाता है और दैनिक समाचार पत्र में भी प्रकाशित किया जाता है। इस प्रकार सभी को एक अवसर प्रदान किया जाता है कि यदि कोई आपत्ति हो तो बता सके। यदि कोई आपत्ति नहीं आती है या सभी संबंधी अपनी सहमति दे देते हैं तो कोर्ट प्रोबेट जारी कर देता है। और जहां संबंधी आपत्ति देते हैं वहां प्रोबेट की अर्जी संपत्ति संबंधी वाद (testamentary suit) बन जाता है और इसके बाद दोनों पक्षों को इस मुद्दे पर साक्ष्य देना होता है। सुनवाई के बाद हाईकोर्ट के द्वारा कोर्ट के मोहर और वसीयत की एक कॉपी संलग्न कर प्रोबेट जारी किया जाता है।

मृत्यु के प्रमाण के लिए सामान्यतया मृत्यु प्रमाण पत्र (death certificate) कोर्ट में दाखिल किया जाता है यदि मृत्यु सैन्य कार्यवाही के दौरान हुई है तो इसकी आधिकारिक अधिसूचना की कॉपी को भी कोर्ट में प्रस्तुत किया जा सकता है। यदि मृत्यु ऐसी परिस्थिति में हुई है जिसमें किसी के जीवित रहने की संभावना कम है या शव नहीं मिला है तो कोर्ट इसे संज्ञान में लेते हुए यह मान लेता है कि व्यक्ति जीवित नहीं है। यदि किसी व्यक्ति के गुम होने पर उसके बारे में 7 वर्षों तक सुना गया न हो तो कोर्ट यह मानता है कि व्यक्ति की मृत्यु हो गई है।

प्रोबेट भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम के अंतर्गत जारी किया जाता है। प्रोबेट केवल निष्पादक या निष्पादकों को जारी किया जाता है जिन्हें वसीयत में नामांकित किया गया है। जहां ऐसा नामांकन नहीं है वहां लाभार्थी या वसीयतकर्त्ता के वारिस को प्रोबेट जारी किया जा सकता है। वसीयतकर्त्ता की मृत्यु के सात दिनों के भीतर प्रोबेट के लिए आवेदन दिया जा सकता है। इसके लिए आवेदन हाईकोर्ट के वकील की सहायता से बनाया जा सकता है, जिस हाइकोर्ट के क्षेत्राधिकार के अंतर्गत संपत्ति आती है। कम मूल्य के अचल संपत्ति के लिए निम्न न्यायालयों को भी सशक्त किया जा सकता है। अधिक मूल्य के अचल संपत्ति के मामले में हाई कोर्ट से ही प्रोबेट लेना होता है। जब वसीयत एक से अधिक राज्यों में अवस्थित अचल संपत्ति के लिए बनाये गये हो तो प्रोबेट लेना अनिवार्य हो जाता है।

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में निर्धारित किया है कि प्रोबेट के लिए अर्जी या लेटर ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन के लिए अर्जी वसीयत कर्ता के मृत्यु की तिथि से 3 साल के अंदर देना चाहिए।

मुस्लिम और क्रिश्चियन के वसीयत के मामले में प्रोबेट की आवश्यकता नहीं है। लेकिन यदि स्पेशल मैरिज का केस है तो प्रोबेट जरूरी है। यदि तीन चार शहरों में संपत्ति है तो प्रोबेट लेना जरूरी है। 26 मई 2002 तक क्रिश्चन के मामले में प्रोबेट लेना जरूरी था लेकिन अब यह जरूरी नहीं है|

सहायक सम्प्रमाण (Anciliary probate)  

मान लेते हैं A की प्रॉपर्टी कुछ मुंबई में है कुछ लंदन में है और कुछ न्यूयॉर्क में है। वसीयत मुंबई में बनाया गया है तो सबसे पहले मुंबई हाईकोर्ट से प्रोबेट लेना होगा और फिर लंदन और न्यूयॉर्क के सक्षम कोर्ट से सहायक सम्प्रमाण लेना होगा।

यह सलाह दी जाती है कि आपके पास यदि अलग-अलग देशों में संपत्ति है तो आप अलग-अलग वसीयत अलग-अलग देशों के लिए बनाए।

प्रोबेट कैवेट (probate Caveat)

जहाँ इस विश्वास का कारण है की वसीयत कपट पूर्ण तरीके से बना है या मृतक द्वारा नहीं लिखा गया है वहां प्रोबेट कैवेट के लिए अर्जी दी जाती है। प्रोबेट कैवेट से वसीयत को चुनौती दी जाती है।

प्रोबेट कैवेट एक दस्तावेज है, जो कोर्ट में इस बात को रोकने के लिए दाखिल किया जाता है कि वसीयतकर्त्ता के प्रस्तावित निष्पादक या प्रशासक को मृतक की संपत्ति के प्रशासन के संबंध में अनुमति न मिले।

हां, यदि कोई निराधार प्रोबेट कैवेट फाइल करता है तो कोर्ट इससे दूसरे पक्ष को हुए नुकसान के लिए खर्च का भुगतान करने को कह सकता है।

प्रोबेट कैवेट वसीयतकर्त्ता की मृत्यु के तुरंत बाद और कोर्ट के द्वारा प्रोबेट जारी करने से पहले फाइल करना चाहिए। यदि किसी को किसी की वसीयत के बारे में शंका है तो जैसे ही वसीयतकर्त्ता की मृत्यु होती हैं उसे तुरंत विधिक सलाह लेनी चाहिए ताकि सही समय पर और सही आधार पर प्रक्रिया चालू किया जा सके।

प्रोबेट को चुनौती

उत्तराधिकार कानून में कुछ आधार दिए गए हैं जिसके आधार पर प्रोबेट को चुनौती दी जा सकती है।

  1.  प्रोबेट पाने के लिए जो प्रक्रिया अपनाई गई वह सारभूत रीति से दोषपूर्ण है।
  2.  प्रोवेट पाने के लिए कपट पूर्ण रीति से गलत सलाह दी गई या सारभूत तथ्यों को कोर्ट से छुपाया गया।
  3. प्रोबेट देना अब परिस्थितियोंवश अनुपयोगी हो गया है।

अब यह प्रश्न है कि प्रोबेट अनिवार्य है कि नही ?

तो मान लेते हैं किसी मृतक के पांच वारिस हैं और कोई विवाद नहीं है तो बिना प्रोबेट के भी आपस में वह सम्पति वसीयत में स्पष्ट इच्छा के अनुसार बांट सकते है। लेकिन किसी तरह का विवाद है स्पष्टता नही है या मतभेद है तो यह हमेशा सलाह दी जाती है कि प्रोबेट ले लिया जाये।

 

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