अंतरजातीय और अंतरधार्मिक शादी का रजिस्ट्रेशन कैसे करायें

अधिकांश व्यक्तिगत कानूनों में अपने धर्म से बाहर शादियों को वैध नहीं माना जाता है। जैसे हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के अनुसार एक हिन्दू और एक गैर हिन्दू के बीच शादी नहीं हो सकती, इसी तरह मुस्लिम विधि के अनुसार एक मुस्लिम और एक गैर मुस्लिम से शादी बातिल या फसिद होगी।

ऐसे में या तो दोनों में से एक पार्टी का अपना धर्म परिवर्तन करना होगा, अन्यथा उनके विवाह की संतति, उत्तराधिकार के संबंध में दिक्कतें होंगी। लेकिन special marriage act के तहत बिना धर्म बदले शादी की जा सकती है।

इसका सबसे अच्छा उदाहरण सैफ अली खान और करीना कपूर की शादी है। उनका विवाह स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत हुआ और दोनों में से किसी को भी अपना धर्म बदलने की जरूरत नहीं पड़ी।

अलग-अलग धर्म को मानने वाले जोड़े , अलग अलग जाति के जोड़े, और विदेश में रहने वाले भी इस अधिनियम के तहत भारत में शादी कर सकते हैं।

विशेष विवाह अधिनियम के तहत विवाह करने के लिए कुछ शर्ते है-

पहला, विवाह करने वाले दोनों पक्षों में से किसी का भी कोई जीवित पति या पत्नी नहीं होना चाहिए।

दूसरा, दोनों पार्टियों में कोई भी पार्टी मानसिक असंतुलन के कारण कानूनी रूप से सम्मति देने में असमर्थ नहीं होना चाहिए।

तीसरा, दोनों में से किसी को ऐसा नहीं होना चाहिए कि वह कानूनी रूप से वैध सम्मति तो दे सकता है या सकती है, लेकिन मानसिक तौर पर विकार ग्रसित होने के कारण वह विवाह और सन्तन्नोपत्ति के योग्य नहीं है।

चौथा, दोनों में से किसी भी पार्टी को उन्मत्तता (mental insanity) के दौरे नहीं पड़ते हो।

पांचवा, विवाह कर रहे पुरुष की उम्र 21 वर्ष या अधिक और महिला की उम्र 18 वर्ष से अधिक होनी चाहिए।

छठा, दोनों पार्टियां एक दूसरे के degree of prohibited relation में नहीं होनी चाहिए। हां,यदि किसी समाज में prohibited relation में शादी की परंपरा है तो अलग बात है।

अधिनियम के तहत विवाह की प्रक्रिया

विवाह का नोटिस

अधिनियम के तहत हर राज्य सरकार विवाह अधिकारी घोषित करती हैं। अमूमन ये आपके क्षेत्र के SDM या DM आदि अधिकारी ही होते हैं। अपने क्षेत्र के, magiatrate के समक्ष जहां दोनों में से कोई भी एक पार्टी रहते हो, दोनों को magistrate के सामने उपस्थित होकर notice देना होता है।

नोटिस के साथ कुछ दस्तावेज़ भी देने होते हैं-

पहला, पासपोर्ट साइज का फोटो

दूसरा, जन्मतिथि का सबूत जैसे जन्म प्रमाण पत्र या 10वीं 12वीं का मार्कशीट आदि।

तीसरा, रहने का स्थान का सबूत जैसे राशन कार्ड

चौथा, पति और पत्नी की ओर से एफिडेविट

पांचवा, फीस

नोटिस के संबंध में ध्यान योग्य बातें

इस अधिनियम के तहत कोई भी शादी 30 दिनों के नोटिस और यदि कोई आपत्ति हो तो आपत्ति के सुनवाई के बाद ही विवाह संभव है। यानि चट मंगनी पट ब्याह वाली स्थिति विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत संभव नहीं हैं।

नोटिस पार्टियों के घर भेज जाने का कोई प्रावधान नहीं है

प्रणव कुमार मिश्रा बनाम दिल्ली सरकार के मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि कानूनी ऐसी कोई शर्त नहीं है कि विवाह नोटिस को पार्टियों के घर के पते पर भेजा जाए।

जरूरी यह है कि नोटिस विवाह अधिकारी के ऑफ़िस के नोटिस बोर्ड में लगाया जाए।

नोटिस देने के बाद की प्रक्रिया

नोटिस का प्रकाशन

नोटिस दिए जाने के बाद विवाह अधिकारी नोटिस को ‘नोटिस बुक’ में रिकॉर्ड करेगा और एक कॉपी कोर्ट के नोटिस बोर्ड पर भी लगाया जाएगा।

ऐसा करने का उद्देश्य है कि अगर किसी व्यक्ति को पार्टियों के बीच विवाह से आपत्ति हो तो वह नोटिस पढ़कर इस संबंध में जान सके, और यदि आपत्ति है तो आपत्ति कर सके। इसे ‘नोटिस का प्रकाशन ‘कहते हैं।

दोनों में से एक पार्टी उस मजिस्ट्रेट के क्षेत्र में नहीं रहती हो तो जिस क्षेत्र में दूसरी पार्टी रह रही हो, वहां की मजिस्ट्रेट को विवाह का नोटिस की कॉपी भेजी जाती है।

आपत्ति किस बिंदु में की जा सकती है

यह ध्यान रखने वाली बात है कि विवाह पर सिर्फ उन्हीं मुद्दों पर आपत्ति जताई जा सकती है कि

  1. शादी करने वाले लड़का या लड्की पहले से ही विवाहित हैं।

  2. या फिर की पार्टियां एक-दूसरे की प्रोबेटेड रिलेशन में है।

  3. या धारा 4 में दी गई विवाह की कोई और शर्तो का उल्लंघन किया गया है।

इस बात पर किसी तरह की आपत्ति नहीं उठाई जा सकती कि पार्टियों के अभिभावक विवाह से सहमत नहीं है।

अगर किसी तरह की आपत्ति विवाह अधिकारी को प्राप्त होती है तो वह 30 दिनों के भीतर इसकी जांच करेगा और जब तक वह निर्णय नहीं लेता, तब तक शादी रजिस्टर्ड नहीं करेगा।

जांच करने के लिए विवाह अधिकारी के पास सिविल कोर्ट की शक्तियां होती हैं।

घोषणा और शादी का प्रमाण पत्र

अगर किसी को आपत्ति नहीं होती है तो विवाह अधिकारी तीन गवाहों के सामने पार्टियों की शादी की घोषणा करता है और विवाह के प्रमाण पत्र दे देता है।

सर्टिफ़िकेट दोनों पार्टियों के बीच विवाह का निश्चयात्मक साक्ष्य(conclusive proof) है।

इस पूरी प्रक्रिया का उद्देश्य है कि कोई भी शादी रजिस्टर न हो जाए, जहां पहले से कोई पति या पत्नी जीवित है या पार्टी prohibited relationship में हो।

अपील

अगर किसी निर्णय खिलाफ जिला न्यायालय में अपील की जा सकती है। इसके आगे अपील का प्रावधान नहीं है। पर अनुच्छेद 226 के तहत High court जाया जा सकता है।

समस्याएं

अलग राज्यों पर अधिनियम के तहत बनाए गए नियम इस तरह की शादियों को registered करने की प्रक्रिया को मुश्किल बना रहे हैं।

 

कई राज्यों के नियमों के अनुसार विशेष विवाह अधिनियम के अन्तर्गत विवाह करने के लिए 16 बिन्दुओ की लंबी चेक लिस्ट है।

कई राज्य में notice को अखबार में छपा जाना अनिवार्य है।

कई राज्यों में विवाह का नोटीस पार्टियों के परिवार वालों को भेजा जाता है।

30 दिनों का समय कई बार परिवार और समाज को अन्तर्जातीय और अन्तरधार्मिक विवाह को रोकने का मौका तैयार कर देता है। पार्टियों पर दबाव बनाना ,डराने ,धमकाने का मौका विवाह के विरोध करने वालों को मिल जाता है।

अलग-अलग राज्यों ने इस प्रक्रिया में छोटे-मोटे बदलाव किए हैं। पर किसी का उद्देश्य यह नहीं हो सकता है कि अंतरजातीय विवाह या अंतरधार्मिक विवाह को रोका जाए क्योंकि ऐसा करना संविधान के विरुद्ध होगा।

विशेष विवाह अधिनियम 1954 प्रगतिशील कानून है। पर यह जरूरी है कि अधिनियम के तहत विभिन्न राज्यों द्वारा बनाए गए नियम, अधिनियम के पीछे के उद्देश्य को बढ़ावा दें क्योंकि संविधान के तहत बिना जाति, धर्म, समुदाय आदि बंधनों के अपना साथी चुनने का हक सभी को है।

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